आखिर मुस्लिम समाज में लड़कियों की साक्षरता दर कम क्यों .....?

आखिर मुस्लिम समाज में लड़कियों की साक्षरता दर कम क्यों .....

 

भारत एक ऐसा देश है जिसमें सभी धर्मों के मानने वाले लोग रहते हैं। इसलिए ही इसे धर्म निर्पेक्ष राष्ट्र के रूप में जाना जाता है। भारत की सवा सो करोड़ की इस जनसंख्या में 17.22 करोड़ मुस्लिम जनसंख्या का बसेरा है जो भारत की कुल आबादी का 14.23 प्रतिशत है। भारत के सभी धर्मों के शैक्षिक स्तर में सबसे कम स्तर मुस्लिम समाज में है। मुस्लिम समाज में शिक्षा को लेकर बहुत ही कम जागरूकता है। लेकिन फिर भी यह स्तर वर्तमान में लगभग 59.1 प्रतिशत के पास पहुँच चुका है। यह स्तर इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि काफी जनसंख्या में लोग गाँवों से आकर शहरों में बस गए हैं या फिर गाँवों का नगरीकरण हुआ है इसलिए भी। परंतु इस साक्षाता दर में लगभग पुरूष ही अधिक हैं महिलाएँ अभी भी पीछे हैं। 

मुस्लिम समाज में शिक्षा के क्षेत्र में 

लड़कियों की स्थिति आज भी दयनीय है। ग्रामीण क्षेत्रों में मुस्लिम समाज में  लगभग 50 प्रतिशत लड़कियों को शिक्षा से ज्यादातर दूर ही रखा जाता है। करीब 30 प्रतिशत लड़कियों को मदरसों तक ही तालीम दिलाई जाती है। लगभग 6% कक्षा 8 और 5 प्रतिशत लड़कियाँ दसवीं कक्षा तक , 5% तक लड़कियाँ कक्षा 12 तक की तालीम हासिल कर पाती हैं। शेष 4% ही लड़कियां उच्च शिक्षा ग्रहण करती हैं और इसके बाद मुस्लिम समाज में मुश्किल से 3% लड़कियाँ ही नौकरी में जाती हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के गिरते स्तर का मुख्य कारण वहाँ पर माध्यमिक विद्यालयों का न होना , परिवार की सिकुड़ती मानसिकता और आर्थिक स्थिति खराब होना है। क्योंकि ग्रामीण इलाकें में अधिकतर मदरसे होते हैं जिसमें दीनी तआलीम के साथ केवल 5 वीं कक्षा तक ही पढ़ाई होती है। यहीं से मुस्लिम लड़कियाँ भी अपनी पढ़ाई शुरू करती हैं। वैसे वर्तमान में गांवों में प्राइवेट स्कूल भी खुल गए हैं जिनमें आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई हो पाती है और इस तरह लड़कियाँ मुश्किल से  कक्षा 8वीं  तक पढ़ पाती हैं।

हमारे मुस्लिम समाज के परिवारों की मानसिकता आज भी बिल्कुल सिकुड़ी हुई है। उनके के लिए लड़कियों की तआलीम से लड़कों की पढ़ाई अधिक महत्व रखती है। अक्सर कुछ परिवार अपनी बच्चियों को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते हैं लेकिन वह दिला नहीं पाते। क्योंकि वह अपनी बच्चियों को गाँव से बाहर शहर या कस्बों में नहीं  भेजना चाहते और गाँवों में इंटरमीडीएट तक के विद्यालयों की सुविधाएँ नहीं मिल पाती।

यदि हम बात करें उत्तर प्रदेश की तो यह एक मुस्लिम बहुल राज्य है और यहाँ मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा का स्तर  बहुत कम है। मैंने मुस्लिम समाज में लड़कियों की  शिक्षा के स्तर को जानने के लिए मुरादनगर विधान सभा क्षेत्र के ऐसे गाँवों में सर्वेक्षण किया जो मुस्लिम बहुल क्षेत्र हैं । इस विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत 68 गाँव आते हैं और इन 68 गाँवों में मुस्लिम बहुल व समानुपाती ग्राम हैं - नेकपुर, खैराजपुर, सहविस्वा, झलावा, साबितनगर, फिरोजपुर, बढ़का,  आरिफपुर सिकरोड़, हुसैनपुर, रावली कला आदि लगभग 30 गाँव हैं। 

जब  मैंने इन ग्रामीण क्षेत्रों में 

शिक्षा की दर को जानने के लिiए सर्वे किया तो परिणाम लगभग 30 

प्रतिशत ही निकला। ग्रामीण क्षेत्रों से बाहर शहरों या कस्बों के विद्यालयों में कक्षा आठ के बाद कक्षा 9, 10, 11, 12 में मुस्लिम लड़कियों की संख्या नाम मात्र के लिए ही रह जाती है।

हालाँकि उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षा के लिए अभियान चलाए " बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और "सर्व शिक्षा अभियान।" इन अभियानों के तहत शैक्षिक स्तर  प्रतिशत काफी हद तक बढ़ा है। जिस कारण मुरादनगर के कस्तूरबा गांधी माध्यमिक विद्यालय (छात्रावास) में 100 लड़कियों में से 76 मुस्लिम लड़कियाँ शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। इन अभियानों के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो शिक्षा के प्रति कुछ हद तक जागरूकता आई है लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश में अभी तक शैक्षिक दर यहाँ से कम ही है। 

तआलीम को लेकर हमारे प्यारे नबी मोहम्मद साहब (स•/अ•) ने भी फरमाया है कि " एक बच्ची की तआलीम एक चौथाई अनाज का सदक़ा देने के बराबर होती है।" 

मुस्लिम समाज की जो लड़कियाँ पढ़ लिखकर आगे बढ़ना चाहती हैं उन्हें किसी न किसी कारण पीछे रह जाना पड़ता है। उन बच्चयियों को परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण मजबूरन अपने सपनों का त्याग करना पड़ता है या फिर उन्हें वो सुविधाएँ नहीं मिल पाती जिससे वे अपने सपने साकार कर सकें। 

कुछ ग्रामीण लोग अपनी बच्चियों के भविष्य के लिए भी नहीं सोचते। उनकी मानसिकता इतनी छोटी होती है की उन्हें अपनी लड़कियों के भविष्य की कोई चिंता नहीं होती।

कुछ लोग तो यहाँ तक बोलते हैं कि "पढ़ - लिखकर कौन सी नौकरी करनी है, इन्हें अगले घर तो जाना है।"  लेकिन ज़रा सोचें कि यदि भविष्य में ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ जाए जिसमें बहुत मुश्किलें हों तो एक अनपढ़ महिला उन परेशानियों का सामना कैसे कर पाएगी। उसे दूसरों के ऊपर निर्भर रहना पड़ेगा। जरूरी नहीं लड़कियाँ पढ़ लिखकर नौकरी ही करें, यह मानसिकता गलत है। शिक्षा बच्चियों के भविष्य के लिए किसी संचित निधि से कम नहीं होती।

एक कहावत भी चलन में है कि "एक लड़की की तआलीम सात पीढ़ियों तक की तआलीम होती है" और यह हकीकत है। यदि लड़कियाँ शिक्षित होंगी तो वह अपनी आने वाली पीढ़ियों को शिक्षित कर सकेंगी और उनका भविष्य संवार सकेंगी। जिससे हमारे मुस्लिम समाज का शिक्षा का गिरता स्तर भी सुधर सकेगा।रिहाना पंवार 

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