लॉकडाउन से टमाटर की खेती हुई चौपट, सरकार से मदद की गुहार

लॉकडाउन से टमाटर की खेती हुई चौपट, सरकार से मदद की गुहार

 

लॉकडाउन की वजह से कीटनाशक का नहीं हो पाया छिड़काव, अब मंडी पहुंचने का कर रहे इंतजार

 


 

पूरा विश्व कोरोना वायरस की चपेट में है। भारत में इसके प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन लगा है। लेकिन यह लॉकडाउन किसानों के लिए बड़ी मुसीबतें पैदा कर रहा है। गाजियाबाद जिले के मुरादनगर के नेकपुर समेत कई ऐसे गांव हैं जहां के किसानों की टमाटर की फसल खराब हो रही है। किसानों की समस्या यह है कि वो खुद को कोरोना से तो बचा लें, लेकिन उनकी फसल की हो रही बर्बादी की वजह से होने वाले आर्थिक नुकसान से उन्हें कौन बचाएगा। ऐसे में अंतिम उम्मीद अब सरकार से ही है।

खेतों में टमाटर ही टमाटर, लेकिन ज्यादातर खराब हैं क्योंकि समय पर कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव नहीं हो पाया। इस वजह से ज्यादातर टमाटर खराब हो चुके हैं और जो बचे है उसके लिए खरीददार नहीं हैं। लॉकडाउन में सब्जी की मंदी है और इस वजह से कोई बड़ा व्यापारी उसे नहीं खरीद रहा। प्रतिबंध की वजह से वो खुद भी मंडी तक टमाटर नहीं पहुंचा सकते। अगर टमाटर मंडी पहुंचा भी देते हैं तो उन्हें इसकी पूरी लागत नहीं मिलती है। उल्टा लागत से अधिक ट्रांसपोर्ट का खर्चा आ जाता है। इस वजह से उनको इस बार टमाटर की फसल में काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

ये स्थिति है गाजियाबाद जिले के मुरादनगर के नेकपूर समेत कई गांवों की, जहां टमाटर की खेती होती है। टमाटर खेतों से निकलकर साहिबाबाद से लेकर गाजियाबाद सब्जी मंडी तक जाती है लेकिन इस बार टमाटर की खेती करने वाले परेशान हैं कि वो कोरोना से लड़ें या भूख से।

टमाटर की खेती करने वाले इरफान का कहना है कि इस बार हमे बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है। अब समझ नहीं आ रहा कि क्या करें? क्योंकि टमाटर की खेती खराब हो चुकी है और जो टमाटर बचे हैं उसके लिए खरीददार नहीं हैं। ऐसे में हम बहुत परेशान हैं कि करें तो क्या करें?

कुछ ऐसे ही हालात दूसरे किसानों के भी हैं। ठेके पर खेत लेकर टमाटर की खेती करने वाली किसान फातिमा बताती है कि हम जैसे लोगों पर दोहरी मार पड़ी है। हमारी कमाई का यही जरिया है लेकिन कोरोना और लॉकडाउन से खेती चौपट हो गई है। मुसीबत ये भी है एक तो टमाटर के खेती में लागत नहीं निकल पा रही है वहीं जमीन मालिकों को भी पैसा देना है। फातिमा बताती हैं कि एक बीघे टमाटर की खेती करने पर 12-14000 रुपए की लागत आती है जिसे बेचने पर किसानों को 40-50000 तक की आमदनी होती थी, लेकिन इस बार आमदनी ना के बराबर है।

बता दें, ये छोटे किसान हैं और इनके पास अपना खेत नहीं होता है. इसलिए ठेके पर जमीन लेते हैं, जिसका पैसा जमीन के मालिक को देना पड़ता है। किसानों ने बताया कि इस बार उनको टमाटर की पांच से छह बीघा फसल में 4 लाख रुपये का नुकसान हो रहा है। उनका यह भी कहना है कि अगर वह अपने सब्जियों को मंडी ले जाने की कोशिश भी करते हैं तो रास्ते में उनको पुलिस की ओर से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। यानी एक तरफ कीटनाशक दवाइयों की कमी से टमाटर खराब हो गए बाकी जो बचा उसे लॉकडाउन ने बर्बाद कर दिया। किसानों के सामने आखिरी उम्मीद अब सरकार ही है।

 

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