कविता - कभी सोचा नहीं था, ऐसे भी दिन आएँगें
अभिषेक अरोड़ा - राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष युवा जल संरक्षण समिति
कभी सोचा नहीं था,
ऐसे भी दिन आएँगें।
छुट्टियाँ तो होंगी पर,
मना नहीं पाएँगे।
आइसक्रीम का मौसम होगा,
पर खा नहीं पाएँगे।
रास्ते खुले होंगे पर,
कहीं जा नहीं पाएँगे।
जो दूर रह गए उन्हें,
बुला भी नहीं पाएँगे।
और जो पास हैं उनसे,
हाथ मिला नहीं पाएँगे।
जो घर लौटने की राह देखते थे,
वो घर में ही बंद हो जाएँगे।
जिनके साथ वक़्त बिताने को
तरसते थे,उनसे ऊब जाएँगें।
क्या है तारीख़ कौन सा
वार,ये भी भूल जाएँगे।
कैलेंडर हो जाएँगें बेमानी,
बस यूँ ही दिन-रात बिताएँगे।
साफ़ हो जाएगी हवा पर,
चैन की साँस न ले पाएँगे।
नहीं दिखेगी कोई मुस्कराहट,
चेहरे मास्क से ढक जाएँगें।
ख़ुद को समझते थे बादशाह,
वो मदद को हाथ फैलाएँगे।
क्या सोचा था कभी,
ऐसे दिन भी आएंगे।।
अभी भी वक्त है यारों
संभल जाओ वरना
यह चेहरा फोटो में नजर आएगा।।
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