कविता - कोरोना ने कर दिया, लोगों को मजबूर - विनोद जिंदल


 

 

कोरोना ने कर दिया, लोगों को मजबूर

पैदल ही घर चल दिए, फंसे हुए मजदूर।

 

फंसे हुए मजदूर, बहाया जहां पसीना

उन शहरों ने, आंखों से हर सपना छीना। 

 

घायलपग ले बोझिल मन, धीरज, ना छोड़ा

हर रस्ते का अंहकार, पथिकों ने तोड़ा।

 

नयी सुबह की आस में, सुप्त होगया देश

काल थपेड़े मारता, बदल बदल कर वेश।

 

बदल बदल कर वेश, लोग बैठे हैं ठाले

तम है चारों ओर,दूर तक नहीं उजाले।

 

मानव जीवन, ईश्वर की अनमोल धरोहर

कुदरत इस पर लगा रही है, अपनी मोहर।

 

नदियां निर्मल हो गयीं, स्वच्छ हुआ आकाश

कुछ माहों में हो गया, प्रदूषण का नाश

 

प्रदूषण का नाश,लोग स्वयं को पहचाने

वर्षों था परिवार, रहे फिर भी अनजाने ।

 

धैर्यवान वो लोग, रहे जो अपने घर में

बुद्धिमान संकट को, बदल रहे अवसर में।

 

कोरोना अब होगया,जन जीवन का भाग

मानवता के सिंधु में, मंथन की है आग।

 

मंथन की है आग,शिवा विष पान करेगा

कोई दधीचि, पुनः अस्थियां दान करेगा।

 

सारे जीवन में, परिवर्तन करना होगा

आज नहीं तो कल, कोरोना को मरना होगा।

 

Comments

Popular posts from this blog

नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी नियमों को उड़ा रहे हैं गाड़ी पर लिखा भारत सरकार

समस्त देशवासियों ,विज्ञापन दाताओं, सुधी पाठकों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

विपनेश चौधरी को मेघालय के राज्यपाल ने राजस्थान में किया सम्मानित