सत्यमेव जयते को अपनी जिंदगी में भी लागू करिए तभी यह सार्थक होगा - इशरत रिज़्वी

सत्यमेव जयते को अपनी जिंदगी में भी लागू करिए तभी यह सार्थक होगा - इशरत रिज़्वी



सत्यमेव जयते हिन्दू ग्रन्थ मुंडका उपनिषद् के एक मंत्र का हिस्सा है ।जिसे 1947 में भारत के आज़ाद होने पर भारत का राष्ट्र वाक्य (nation motto ) बनाया गया।


ये हमारे देश के राष्ट्रीय चिन्ह अशोक चक्र के नीचे लिखा होता है। अतः हम कह सकते हैं कि ये हमारे देश की पहचान भी है और हिन्दू धर्म के ग्रन्थ का हिस्सा होने के नाते भारत के बहुसंख्यकों की दृष्टि में इस मंत्र की बड़ी अहमियत है और इस मंत्र को सार्थक बनाना सभी हिन्दुओं का फ़र्ज़ है।


सत्यमेव जयते का अर्थ होता है "सत्य की जीत।" 


अब अगर दूसरे धर्मों की बात करें तो सब धर्म आपको सच का साथ देने, सच की ही राह पर चलने की शिक्षा देते मिलेंगे। तो फिर ये कहना कि मेरी ये विचारधारा है और उसकी वो विचारधारा है। मैं इस पार्टी का समर्थक हूं या उस पार्टी का समर्थक हूं। इस नेता का समर्थक हूं या उस नेता का। 


मैं नक्सली के विरूद्ध हूं, मैं कश्मीरी पंडितों के साथ हूं या कश्मीरी मुसलमानों के खिलाफ़ हूं।


कितना अच्छा होता अगर हम सब कहते हम सच के साथ हैं। हम हक़ के साथ हैं। हम सत्य के पुजारी हैं ।


हम सच के एम्बेसडर हैं हम सच के अलम बर दार हैं। हम उधर हैं जिधर सच है। हमारी विचारधारा सत्यमेव जयते है। सच को विजयी बनाना हमारे जीवन का लक्ष्य है।


आपको नहीं लगता कि सच वो बुनियाद है जो हम सब को जोड़ती है बिना किसी धर्म और जात के, राज्य और भाषा के भेदभाव के।


मगर फिर भी हम इंसान एक दूसरे से लड़ते हैं एक दूसरे से टकराते हैं क्योंकि सच को सच के रूप में स्वीकार नहीं करते बल्कि हम सच को अपने पूर्वाग्रह की बुनियाद पर हमारा सच और तुम्हारा सच बना देते हैं। मिलावट करके ,


कभी सच को नकार के, कभी उसमें सच और झूठ का मिश्रण तैयार करके एक नया सच गढ़ लेते हैं।


शायद निश्चित तौर पर यही वजह है जो इंसान सच के रास्ते से भटक जाता है और तभी हमारे रास्ते अलग अलग हो जाते हैं। मेरा मानना है सच को तलाश करना पड़ता है। सच थाली में परोसा भोजन की भांति आसानी से प्राप्त नहीं होता।


इसकी तलाश करनी पड़ती है। अगर आप सिर्फ एक किताब पढ़ें या एक ही समाचार पत्र पढ़ते रहें या एक ही न्यूज चैनल देखते रहें तो हम कभी भी सच तक नहीं पहुंच सकते।


ये बात मैं उनके लिए कह रही हूं जो सत्यमेव जयते के समर्थक हैं। मैं उनकी बात कतई नहीं कर रही जो अड़ियल , ज़िद्दी या अंधविश्वासी या अन्धभक्ति में विश्वास रखते हैं जिनके लिए सच वो होता है जो उनके मन भाए।


सत्य की तलाश के लिए हमें चाहिए कि हम कुएं का मेंढक ना बन जाएं। जो ये मानता है कि ये कुआं ही पूरा संसार है और जो वो देखता या सोचता या जानता है वही अंतिम सत्य है।


हमें ज़रूरत है कि हम आज़ाद पंछी की तरह खुली हवा में भटकें यहां वहां और सब कुछ देखने सुनने और जानने के बाद ही सत्य को प्राप्त करें।


सच एक दरवाजे से नहीं मिलता बल्कि बहुत से दरों पर भटकने से अलग अलग झरोखों से मिले ज्ञान से सच तलाश करें। भक्ति तभी तक कीजिए जब तक उस गुरु के सच्चे होने का विश्वास हो।


आप का विश्वास कहीं अंध विश्वास तो नहीं समय समय पर इसको परखते रहना चाहिए।


याद रखिए कि हम सब को सिर्फ सत्यमेव जयते पर विश्वास रखना है और इसे सार्थक बनाए रखने का हर संभव प्रयास करते रहना है। याद रहे कहीं हम सत्य के विरूद्ध तो नहीं खड़े हो गए ?


ये वो नारा है जिससे कोई असहमत हो ही नहीं सकता जो असहमत होगा वो सिर्फ झूठा, पापी और घमंडी होगा जिसके लिए सिर्फ उसका लाभ उसकी ज़िन्दग़ी, उसकी खुशियां, उसका अभिमान मायने रखता होगा सत्य और इन्सानियत नहीं।


अब आपका फैसला है कि आप किधर रहना चाहते हैं।


 


लेखिका व समाज सेविका


इशरत रिज़्वी


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