आत्मनिर्भरता का अर्थ आत्मकेंद्रित व्यवस्था नहीं

आत्मनिर्भरता का अर्थ आत्मकेंद्रित व्यवस्था नहीं


 



प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचा, आधुनिक तकनीक, जनसांख्यिकी और मांग के पांच स्तमभों पर " आत्म निर्भर भारत " खङा करने का बिगुल फूंका। कोरोना संकट के बीच पीएम ने 


लोकडाउन चौथी बार बढ़ाने की घोषणा के साथ " आत्मनिर्भर भारत अभियान " के लिए बीस लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा की। यह पैकेज देश की अर्थव्यवस्था का दस फीसदी है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में किसानों, श्रमिकों का ज़िक्र करते हुए साहसिक सुधारों पर ज़ोर दिया। उन्होने ने कहा ,


कारोबार बढ़ाने, निवेशकों को आकर्षित करने, और " मेक इन इंडिया '' को आगे लेजाने के लिए कृषि 


की सप्लाई चेन , तर्कसंगत कर प्रणाली ,सरल क़ानून , कुशल मानव संसाधन और मज़बूत वित्तीय वयवस्था की ज़रूरत है। कोरोना संकट काल में पूरी दुनिया तहस नहस हो गई है। अपना संकल्प और मज़बूत करना होगा । संकल्प इस संकट से भी ज़्यादा विराट होगा। थकना, हारना


,टूटना, बिखरना मानव को मंजूर नहीं।


सतर्क रहते हुए कोरोना जंग के सभी नियम मानते हुए हमें बचना भी है और 


आगे बढ़ना भी है। राष्ट्र के रूप में इस समय हम एक अहम मोड़ पर खड़े हैं।


इतनी बड़ी आपदा भारत के लिए अवसर लेकर आई है। जब इन दोनों 


कालखण्डों को भारत के नज़रिए से देखते हैं तो लगता है कि 21 वीं सदी भारत की होगी। यह हमारा सपना नहीं, हम सब की ज़िम्मेदारी भी है।


लेकिन इस का रास्ता किया होगा ? हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि-एष: पंथा । विश्व की आज की स्थिति भी 


यही सिखाती है कि इस का एक ही मार्ग है- "आत्मनिर्भर भारत " ।


रक्षा के क्षेत्र में " आत्मनिर्भर भारत " के सपनों को अहम कामयाबी हासिल 


हुई है। डी आर डी ओ ने देश में ही विकसित " हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी


डिमांस्ट्रेटर व्हीकल " का सफ़ल परीक्षण किया। इस सफलता से भारत भविष्य में " मिसाइल सिस्टम और एरियल प्लेटफार्म " तैयार कर सकेगा । अमेरिका, चाइना औऱ रूस के बाद यह तकनीक हासिल करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डी आर डी ओ) द्वारा विकसित ( एच एस टी डी वी) का परीक्षण ओडीशा के बालासौर स्थिति ए पी जे अब्दुल कलाम रेंज में किया गया। इसे स्क्रेमजेट ( तेज रफ्तार) इंजन की मदद से छोड़ा गया। अग्नि


मिसाइल बूस्टर , हाइपरसोनिक व्हीकल को 30 किमी ऊँचाई तक ले गाया,जिस के बाद दोनों अलग हो गए। इसके बाद एच एस टी डी वी का एयरइंटेक खुला औऱ इस से स्क्रेमजेट 


इंजन चालू हो गया , ज्वलन 20 सेकण्ड तक चला और इस से 6 मेक की रफ़्तार हासिल करली। इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व डी आर डी ओ प्रमुख जी सतीश रेडडी ने किया। सूत्रों के मुताबिक, भारत अब अगले पाँच साल में " हाइपरसोनिक मिसाइल " तैयार कर सकेगा। हाइपरसोनिक मिसाइल एक सेकंड में 2 किमी तक वॉर कर सकता है। इस कि रफ्तार ध्वनि रफ़्तार से 6 गुना अधिक होती है। यानी दुश्मन के एयरडिफ़ेंस सिस्टम तक को इसकी भनक तक नहीं लगेगी।


अंतरिक्ष मे आत्मनिर्भरता- जो विकसित देश हमें मुंह चिढ़ाते थे,आज


इसरो से अपने उपग्रह भिजवाने को मजबूर हैं। 1962 में अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई ने इस से देश के सतत विकास में सहयोग और मानव जीवन को उन्नत बनाने का सपना देखा था। साराभाई का कहना था , कि भारत हमेशा शान्तिपूर्ण उद्देश्यों और आमजन जीवन व समाज की समस्या सुलझाने के लिए अंतरिक्ष


कार्यक्रम का उपयोग करेगा । लेकिन इसके लिए स्वदेशी तकनीक बढ़ाने पर ज़ोर देना होगा। साराभाई के इस संकल्प को साकार करते हुए हमारे वैज्ञानिकों ने " प्रक्षेपण यान " और सेटेलाइट टेक्नोलॉजी " में महारात हासिल की। प्रक्षेपण यान का आत्मनिर्भर सिस्टम विकसित किया औऱ जटिल स्पेसक्रॉफ्ट टेक्नोलॉजी हासिल की । कुछ दशक पहले तक देश की कमज़ोर माली हालत के मददेनज़र सस्ती स्वेदशी टेक्नोलॉजी और क्षमता की ओर क़दम बढ़ाने शुरू किये इसी का नतीजा है कि आज इसरो इन दोनों मोर्चों पर दुनिया में अपना खास मक़ाम हासिल कर चुका है। नाज़ की बात यह है कि जो विकसित देश हमें अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी 


देने से इनकार करते थे , आज वे हम से अपने उपग्रह लॉन्च कराते हैं। पिछले कुछ वर्षों में तो इसरो दुनिया का प्रमुख सफ़ल शोध और विकास संस्थान बनकर उभरा है। उसने न सिर्फ़ ब्रह्माण्ड को जानने के लिए आधुनिक उन्नत तरीक़े ईजाद किये हैं,


बल्कि धरती पर मानव जीवन सुगम बनाने पर भी उतना ही ध्यान दिया।


हमारे लिए बहुत गर्व की बात यह है कि, इसरो के वैज्ञानिकों ने रॉकेट और


अच्छे सॉफ्टवेयर लगे मिसाइल सिस्टम , उच्च ऊर्जा वाले प्रणोदक, अंडर वाटर सिस्टम , इलेक्ट्रॉनिक वार सिस्टम , सटीक रडार और कूटलिपि की अपनी पद्धतियाँ ईजाद कीं। पी एस एल वी का, विकास टर्निंग प्वाइंट


रहा। इसके जरिये इसरो में भारी पेलोड के साथ एक के बाद एक कई सेटेलाइट लॉन्च किए। भारत की इस कामयाबी को देखकर विकसित देश भी हैरान हैं।


जब अमेरिका का संस्थान नासा 1969 में चाँद पर मानव मिशन अपोलो भेज रहा था तब तक इसरो अपने अस्तित्व में भी नहीं था। लेकिन महज़ पचास साल के सफ़र में इस की 


वैज्ञानिक इंजीनियरिंग प्रतिभा और स्वेदशी तकनीक नवाचार के ज़रिए दुनिया को हतप्रभ कर दिया है।


ग़ौर करने वाली बात यह है कि नासा के मुक़ाबले इसरो का बजट 14 गुना कम है। नासा को सालाना अमेरिकी सरकार से 21 अरब डॉलर मिलते हैं जबकि इसरो महज़ 1.5 अरब डॉलर से दुनिया में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाये हुए है।


मुल्क से प्यार हर शहरी को इरफ़ान होना चाहिए।


शहीदों की ज़मीं का नाम हिंदुस्तान होना चाहिए ।


मुहम्मद इरफान (पूर्व प्रधानाचार्य)


     जे.एल.एम.इ. का. कुन्दरकी


                   मुरादाबाद


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