कला और समाज में सम्बन्ध - डॉ अमित कुमार

कला और समाज में सम्बन्ध - डॉ अमित कुमार


कलाकार बाह्य जगत के रूप, स्वरूप, गतिविधियों एवं समाज की भावनाओं से संबंध बनाकर ही सृजन किया करता है। वह अपने सृजन में सामाजिक भावनाओं का मानव वृत्तियों से सीधा संबंध रखता है। कलात्मक सृजन में इन्ही भावनाओं की अभिव्यक्ति होती है। परिणाम स्वरूप कला का रूप भी विश्वव्यापी होता है। कलाकार की प्रतिभा उसकी आत्माशक्ति एवं उसके कलात्मक तत्व कला के रूप में समाज के स्वरूप और भावनाओं के साथ सामंजस्य जोड़कर उसको व्यापक रूप प्रदान करते हैं। कला के अधिकांश विषय तत्कालीन समाज की समस्याएं ही होती हैं। इस उद्देश्य से किए गए सृजन में व्यक्तित्व गोण रूप ले लेता है और समाज की आवश्यकताओं का प्रतिबिंब उसके सृजन में स्पष्ट झलकता रहता है। कलाकार ऐसी स्थिति में उद्देश्य अभिव्यक्ति के माध्यम से आत्मशांति प्राप्त करना चाहता है। इस स्थिति में उद्देश्य की प्राप्ति के लिए स्वयं अपना मार्ग चुनता है। लेकिन समाज से कभी अलग नहीं रह सकता। किंतु तकनीकी सिद्धांतों के समक्ष दर्शक के आनंद और आत्म शक्ति का लक्ष्य रहता है। सिद्धांत के आधार पर पहली स्थिति में सृजित कला का रूप शुद्ध और मौलिक होता है तथा दूसरी स्थिति में लक्ष्य पूर्ति के लिए कला का रूप व्यवहारिक एवं मौलिकता उससे दूर हो जाती है। फल स्वरूप अनेकों तकनीकों को ग्रहण करना तथा उन्हें शिल्प के रूप में प्रस्तुत करना होता है।

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